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बचा रहूँगा मैं / रणजीत

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मैं सोचता हूँ
तो मैं हूँ
और मेरे लिये है यह सारा संसार
मैं सोचना बन्द कर दूँ
तो कहाँ हूँ मैं?
कहाँ है यह सारा संसार?
कम से कम मेरे लिये तो नहीं ही रहेगा वह।
मैं लगभग सोचना छोड़ दूँ
तो मैं लगभग नहीं रहूँगा
और पूरी तरह छोड़ दूँ
तो पूरी तरह नहीं रहूँगा मैं।

मैं जिसके बारे में सोचता हूँ
वह है
और कहीं नहीं
तो है मेरी सोच के दायरे में
कल मैंने सत्तावन साल पहले नहीं रहे
अपने दादा जी के बारे में सोचा
और पैंतीस साल पहले गुजर गयीं अपनी मां के बारे में
कि किस तरह वे एक शरणार्थी के रूप में महीनों धक्के खाते-खाते
पाकिस्तान बन गये झेलम जिले के मदूकालस गांव से
हिन्दुस्तान में शामिल मेवाड़ के कस्बे भीलवाड़ा तक पहुँचे थे
और हम बच्चे अपनी मां के साथ बैठकर
बीन रहे थे
उनके महीनों से नहीं धुले कुर्ते की सीवनों से जुएं
तो इसका मतलब है कि वे हैं अभी भी
मेरे भीतर
उन्हें कभी-कभार याद कर लेने वाले
मेरे भाई-बहिनों की चेतना में
मैंने उनके बारे में सोचा
तो पाया उनके होने का प्रमाण।
मैं भी रहूँगा
रहूँगा अपने बच्चों
अपने मित्रों-परिचितों के बच्चों की स्मृतियों में
अपनी किताबों में
- अगर उनमें से कोई बची रही
किसी घर, किसी पुस्तकालय में।
रहूँगा अपने अनगिनत विद्यार्थियों, श्रोताओं, सामाजिकों की स्मृति में
दुकानदारों, सब्जीवालों, बिजली ठीक करने वाले मिस्त्रियों
राजगीरों, बढ़इयों, घरेलू नौकरानियो, रिक्शेवालों
और स्कूटर मैकेनिकों की स्मृतियों में
जिन जिन से मेरा साबका पड़ा है इस जीवन में
वनस्थली विद्यापीठ और बांदा और बीकानेर की
उन छात्र-छात्राओं की स्मृतियों में
जो मेरे स्नेह की विशेष पात्राएं रही
जैसे प्रीयूनिवर्सिटी की उस छहफुटी छात्रा की
जिसने बाद में जम्मू के एक पायलट से विवाह किया
और मुझे एक दिन पहलगाम में मिली
और गोरी-ठिगनी उस बुलन्दशहर की लड़की की चंचल आँखों में
जिसका नाम ही मुझे भूल गया
वह भी भूल जाये शायद मेरा नाम
और याद रखे केवल मेरी कविता की कोई पंक्ति
और पटना की उस बड़ी-बड़ी आँखों वाली मुकुल की स्मृति में तो जरूर ही
जिसके स्नेह और सम्मान भरे पत्र मिलते रहे मुझे
उसकी शादी के वर्षों बाद तक
उसके शायद बच्चे भी मुझे बचाये रखेंगे
क्योंकि उसने जरूर पढ़ाई होगी उन्हें
मेरी कविताओं की पहली किताब
जो मुझसे ही खरीदकर सहेजी थी उसने
उसके बच्चों के बच्चों तक बची रह सकती है
सीलन और दीमकों से मेरी वह किताब।
कभी न कभी किसी अनाम पाठक की आँखों के सामने
अनायास मेरी कोई कविता आ जायेगी किसी पत्रिका में छपी
तो बचा रह जाऊँगा उसकी आँखों
उसके दिमाग के किसी कोने में
या किसी कबाड़ी के हाथों बेच दिये गये
उसके पन्नों से बने लिफाफे में
कोई नाश्तेदार जलेबियां या समोसे घर ले जायेगा
और निगाह डालेगा उन्हें खाते हुए मेरी किसी पंक्ति पर
बचा रहूँगा मैं कहीं न कहीं
किसी न किसी की सोच में।