भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गोदना / विश्वासी एक्का
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:59, 19 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वासी एक्का |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रोम छिद्रों के इर्द-गिर्द
चार-चार सुइयाँ चुभाना बारम्बार
दर्द सहना ओठों को भींच कर
क्योंकि आजी ने कहा था —
अभी रोना अशुभ है ।
सैकड़ों प्रहार के बाद भी
आँखों से आँसू न बहना
क्या वह
मरने के बाद साथ जाने का
आभूषण प्रेम था
या जीवनपर्यन्त
कष्ट सहते रहने की
पूर्व-पीठिका !