मृतक स्तम्भ / पूनम वासम
पाषाण युग से चली आई परम्परा ने
बचाए रखा है हमें अब तक पाषण होने से
कि जन्म से लेकर मृत्यु तक धर्म-भीरुता का कीड़ा
हमारी नसों में गर्म लहू-सा दौड़ रहा है
तुम्हारा जाना पूर्वनिर्धारित था जिसे रोक पाना
हमारे वश में नहीँ पर तुम्हें ज़िन्दा रखना
किसी इतिहास की गाथा की तरह
हमारी पहली प्राथमिकता है
तुम्हारी समाधि पर महीनों तक
ठण्डे पानी का घड़ा रखना हम नही भूलते
हमें पता है तुम्हारी प्यास को बुझाने का यही एक तरीका है
तुम्हे पसन्द थी न ताड़ी, सल्फ़ी
हर वह वस्तु जो तुम्हें बेहद प्रिय थी
रख दी गई है उकेर कर तुम्हारी स्मृति में लगे स्तम्भ पर
तुम्हारी प्रिय साइकिल जिस पर सवार होकर तुम
मीलों दूर जगदलपुर जाया करते थे
रोजी-रोटी की तलाश में
वह तुम्बा भी है वहीं, जिसमें रखा पेज
तुम्हारी जीभ को मीठा लगता था
रस्सी की टूटी खटिया, गेंदे का फूल
सम्भाल कर उकेर दिया है
धान काटने वाला हंसिया और
लकड़ी काटने वाला टँगिया भी
गुड़ाखू की डिबिया, तम्बाखू की पुड़िया के साथ पड़िया और पान का पुड़ा
पत्थर तोड़ते तुम्हारी मांसपेशियों से निकलने वाले पसीने का आत्मीय मित्र तुम्हारा लाल गमछा भी रख छोड़ा है
हमारी ख़ैर-ख़बर लेकर तुम तक
सन्देश पहुचाने वाले कौवों की तस्वीर भी
तुम्हारी मेनहीर में उकेर दी है
तुम चिन्ता न करना बीज पण्डुम में तुम्हे न्यौता भेज देगें तुम्हारी बिटिया के ब्याह का
तुम जाओ ख़ुशी-ख़ुशी
हमें पता है मेनहीर का आकार सालों साल बढ़ेगा तेज़ी से
कि तुम मरने के बाद भी
अपने गाँव की मिट्टी के लिए शुभ सँकेत छोड़ जाओगे मृतक स्तम्भ के रूप में
तुम्हारा जाना पूर्वनिर्धारित होने के बावजूद
हम तुम्हें जाने नही देंगे कभी हमारे बीच से ।