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सूक्षमाऽलंकार / दीनदयाल गिरि
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कासों हनिये कोप को कापैं पैये ज्ञान ।
गुरु मौन मैं नहिं कैया छिति छ्वैके धरि कान ।।
छिति छवैके धरि कान्दसन रवि फेरि लखाए ।
देखि केस की ओर सुनै न कपाट लगाए ।।
बरनै दीनदयाल सिख्य गुरु की करुना सों ।
समुझि लई सब सैन बैन तिन्कह्यो न कासों ।। ६५।।