भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात बीती / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:22, 13 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर }} :याद ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

याद रह-रह आ रही है,
रात बीती जा रही है !

ज़िन्दगी के आज इस सुनसान में
जागता हूँ मैं तुम्हारे ध्यान में

सृष्टि सारी सो गयी है,
भूमि लोरी गा रही है !

झूमते हैं चित्र नयनों में कई
गत तुम्हारी बात हर लगती नयी

आज तो गुज़रे दिनों की
बेरुख़ी भी भा रही है !

बह रहे हैं हम समय की धार में
प्राण ! रखना पर भरोसा प्यार में

कल खिलेगी उर-लता जो
किस क़दर मुरझा रही है !