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बिरहिन / महेन्द्र भटनागर

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कब सरल मुसकान पाटल-सी बिखेरोगे सजन !

अनमना सूना बहुत बोझिल हृदय
धड़कनों के पास आओ, हे सदय !

कर रही बिरहिन प्रतीक्षा, उर भरे जीवन-जलन !

धूप में मुरझा रही यौवन-लता
मधु-बसंती प्यार इसको दो बता

मोरनी-सी नाच लूँ जी भर, रजत पायल पहन !

साथ ले चितचोर सोयी है निशा
भाविनी-सी राग-रंजित हर दिशा

रे अजाना दर्द प्राणों का, करूँ कैसे सहन !