भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एशिया / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:21, 13 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर }} संगठ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संगठित संघर्षरत सम्पूर्ण अभिनव एशिया
जागरित आलोकमय प्रत्येक मानव एशिया,
मुक्त अब साम्राज्यवादी चंगुलों से हो रहा
सभ्यता-साहित्य-संस्कृति-अर्थ-वैभव एशिया !

चीन-भारत मित्राता का जल रहा उर-उर दिया
स्नेह-पूरित ज्योति से जिसने उजागर युग किया,
वादियों दुर्गम पहाड़ों जंगलों औ’ मरुथलों
में बसे हर ग्राम-जनपद को बना सुर-पुर दिया !

दृढ़ सुरक्षा-भावना ले पंच शर्तों की शिला
सर उठाये व्योम में अविचल खड़ी सबको मिला,
शांति से सहयोग से अविराम निज-गन्तव्य तक
सत्य, पहुँचेगा नये युग-साधकों का काफ़िला !

अब न होगा चूर सपना आदमी की प्रीत का,
और बढ़ता जायगा विश्वास उसकी जीत का,
आँसुओं का शाह भी अब छीन पाएगा नहीं
माँ-बहन के कंठ से स्वर-राग सावन-गीत का !