भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वसीयत / ऋषभ देव शर्मा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:05, 30 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सुनो !
मैंने
अपने दोनों हाथ
तुम्हारे नाम
वसीयत
कर दिए हैं
जानता हूँ –
इनके
संवेदनशून्य
खुरदरे स ?
तुम्हारी देह
पुलकित नहीं होगी,
बस,
होंठ बिचका दोगी
तुम
घृणा से
फिर भी
अगर तुम्हें
कभी ऊष्मा की ज़रूरत हो
तो
मेरे दोनों बेडौल हाथ
चूल्हे में झोंक देना,
ये
मैंने
तुम्हारे नाम
वसीयत
कर दिए हैंI