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स्वर-साधना / महेन्द्र भटनागर
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सतत आश-विश्वास के स्वर
समय-बीन पर मैं बजाता रहा हूँ !
डगर पर घिरा है अँधेरा सघन,
भयावह निखिल आज वातावरण,
घटाएँ घिरीं और गरजा गगन,
मरण की चिता पर विजय-गान गाता रहा हूँ !
समेटो मनुज प्राण-साहस अमर,
अनल में तपो जो लगा है प्रखर,
जवानी बड़ी जायगी यों निखर,
सुनाकर सबल स्वर जगत को जगाता रहा हूँ !