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प्रलय / महेन्द्र भटनागर
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उजड़ा पड़ा सारा नगर,
सूनी पड़ी सारी डगर,
चिडियाँ तृषित सहमी खड़ीं,
कुटियाँ सकल टूटी पड़ीं,
छायी अवनि-आकाश में दहशत !
आ सनसनाता है पवन,
क्रोधित प्रखर धधकी जलन,
ज्वाला ग्रसित अगणित सदन,
उर्वर हुआ, सूखा विजन,
दृढ़ उच्च दुख का बन गया पर्वत !
कण-कण गया भू का सिहर,
उर में बही भय की लहर,
हिंसक बढ़े जब घिर अमित,
क्रन्दन, मरण जन-जन दमित,
दुर्बल जगत सारा हुआ आहत !