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अब / विजयदेव नारायण साही

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वे बाजार में लुकाठी लिए खड़े हैं
मेरा घर भी जलाते हैं
और मुझे साथ भी पकड़ ले जाते हैं
अब ?

वे बाज़ार लूटते हैं.
और रमैया की जोरू की इज़्ज़त भी
नर भी । नारी भी । देवता भी । राक्षस भी ।
उन्होंने हाहाकार मचा दिया है
अब ?

मैंने जो प्रेम का घर बसाया था
ठीक उसके सामने
उन्होंने मेरा सर उतारा
और भूमि पर रख दिया
फिर मेरे घर में पैठ गए
जैसे यह उनकी ख़ाला का घर हो ।
अब ?

सबसे भली यह चक्की है
जिसके द्वारा
संसार पीस खाता है
क्या सचमुच सबसे भली यह चक्की है
जिसके दो पाटों के बीच में
कोई साबूत नहीं बचता ?
अब ?