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किसान / शंकरानंद
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पूरी पृथ्वी का अधिकांश उसके बीज के लिए बना
हुआ यह कि सब ग़ायब होने लगा धीरे-धीरे हिस्सा
जैसे बच्चे का खिलौना कोई ग़ायब कर देता है
वह सरकार हुई
जिसके लिए किसान बीते मौसम का उजड़ा हुआ दिन था
कोई बंजर जिसका होना न होना कोई मायने नहीं रखता
कोई खण्डहर कोई खर-पतवार
यह एक किसान का जीवन तय हुआ
जिसके मरने पर भी कोई आँसू नहीं बहाता था ।