भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कान्हा संग / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:31, 30 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मन ही तीर्थ चारो, कान्हा संग।
मन श्यामहिं डूब चला, राधे रंग।
परमानंद मगन मन, गाये आज,
प्रीति करे परबस मन, भीगे अंग।
भूल सकल भव बंधन, राज समाज,
मिले जीव परमात्मन, प्रानहि भंग।
प्रीत सुधारस बरसे, गोकुल धाम,
पहन प्रीति का चोला, ध्यावै चंग।
प्रेम दिवानी राधे, खड़ी उदास,
अजब निराले प्रीतम, के सब ढंग।