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उनसे क्या करें / प्रेमलता त्रिपाठी

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साथ देते जो सदा तकरार उनसे क्या करें।
मन मिले जीवन सधे इंकार उनसे क्या करें।

आस जिनसे थी लगा बैठे हृदय को आज हम,
डूबती नौका धरें पतवार उनसे क्या करें।

प्रिय सहारे स्नेह के बढ़ती रहे यह साधना,
माँगती हूँ धैर्य अब प्रतिकार उनसे क्या करें।

सोचना है धर्म मानव कर्म फलते हैं तभी,
मिट सके कटुता हृदय व्यवहार उनसे क्या करें।

प्रेम अर्पण नाम है यह ईश की आराधना,
जो सरस तनमन बसा कुविचार उनसे क्या करें।