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गजल / मुनेश्वर ‘शमन’
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उनकर तऽ निहारय के अदा प्यार-सन लगय।
पल भर के खुसी ही सही बहार-सन लगय।
अँखिया ऊ, देखइते ही ले हइ चट से रिस्ता जोड़।
जादू भरल नजरिया तलबगार-सन लगय।
चानो से नीक चेहरा, तेकरा पर तरल हँसी।
जब-जब भी जेतने भी मिलय फुहार-सन लगय।
एक छुअन नसीला मिलल तऽ जियरा कह उठल।
ई ढीठ उमरिया चढ़ल खुमार-सन लगय।
जे बात चाहय मन कि कहे पर नञ कह सकय।
मजबूरी दिल के हमरा ई बेकार-सन लगय।
गुड्डी के डोरी के तरह खिंचइते रहलूँ रोज।
नवकन कते हसरत बेअख़्तियार-सन लगय।