भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सभी सोचते / बालस्वरूप राही
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:12, 23 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालस्वरूप राही |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सभी सोचते : कितने प्यारे
मेरे पापा, मेरा घर,
होता है अभिमान सभी को
अपने धर्म, विचारों पर।
सही समझना बस अपने को
अन्य सभी को सदा गलत,
अच्छी बात नहीं होती है
भूल कभी यह करना मत।
झूठी शान और गुस्से से
सारा काम बिगड़ता है,
चोटी-चोटी बातों को ले
क्यों संसार झगड़ता हैं?