भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भगत सिंह / रोहित आर्य

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:55, 7 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रोहित आर्य |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भगत सिंह हुंकारे तो लन्दन थर्राया,
फाँसी पर चढ़कर भारत आजाद कराया
लिख कर चला गया वह गाथा एक अनोखी,
देश पै जान लुटा देने वाले वीरों की।
जो कोई उसकी गाथा को दोहरायेगा,
उसके ठण्डे लोहू में उबाल आएगा।
तीव्र प्रचंड ज्वाल को उसने था सुलगाया॥1॥
फाँसी पर चढ़कर...
माँ विद्यावती और किशन सिंह का वह बेटा,
जान-बूझकर जिसने सर से कफ़न लपेटा।
खटकड़ कलां गाँव से निकली थी चिंगारी,
जिसके साहस से गोरी सरकार थी हारी।
उसी बवंडर ने जग में तूफ़ान मचाया॥2॥
फाँसी पर चढ़कर...
बचपन में ही जिसने बंदूकों को बोया,
देख गुलामी की जंजीरों को वह रोया।
करी प्रतिज्ञा मन ही मन उस शेर बब्बर ने,
अंग्रेजो को मार भगाऊंगा भारत से।
उस बालक ने आजादी का पथ अपनाया॥3॥
फाँसी पर चढ़कर...
पढ़ते-पढ़ते उतर गया था अब वह जंग में,
लहू बहाने निकल पड़ा आजाद के संग में।
सिर्फ एक था लक्ष्य कि आजादी लाएंगे,
उसकी खातिर अपना जीवन सुलगाएंगे।
इन लोगों ने ही लन्दन का तख़्त हिलाया॥4॥
फाँसी पर चढ़कर...
लाला जी के मस्तक पर जो वार हुआ था,
भगत सिंह के सीने से वह पार हुआ था।
उनकी हत्या का बदला इस तरह लिया था,
बीच सड़क पर सांडर्स को मार दिया था।
ऐसा करके अंगरेजों का दिल दहलाया॥5॥
फाँसी पर चढ़कर...
गूंगी बहरी सरकारों को बात सुनाने,
असेंबली के भीतर घुस गए सीना ताने।
किया बम्ब विस्फोट व भागम-भाग मचा दी,
गोरी सरकारों की इससे चूल हिला दी।
राजगुरु, सुखदेव के संग में तांडव ढाया॥6॥
फाँसी पर चढ़कर...
न्याय के नाटक ने गोरों की जात दिखाई,
जज ने तीनों को फाँसी की सजा सुनाई।
सुनकर सजा झूम गए माता के दीवाने,
भारत माँ की जय के नारे लगे सुनाने।
देख के सारा न्यायालय इसको चकराया॥7॥
फाँसी पर चढ़कर...
काल कोठरी में हँस-हँसकर जीवन काटा,
कायर गोरों के गालों पर जड़ा तमाचा।
इंकलाब के रहते हरदम नारे गाते,
निज सौभाग्य मानकर हरदम ख़ुशी मनाते।
उनकी जिन्दादिली से लन्दन भी थर्राया॥8॥
फाँसी पर चढ़कर...
भगत सिंह के लिए देश सब उबल रहा था,
धीरे-धीरे सभी गुलामी निगल रहा था।
कायर गोरों ने इससे ही तो घबराकर,
एक दिन पहले मारा फाँसी पर लटकाकर।
अपनी कायरता को गोरों ने दिखलाया॥9॥
फाँसी पर चढ़कर...
फाँसी पाने चले वीर हँसते-मुस्काते,
रंग दे बसंती चोला मेरा गीत सुनाते।
तीनों ने मिलकर अम्बर कम्पित कर डाला,
झूम के फाँसी का फन्दा गर्दन में डाला।
देख के तीनों के साहस को यम घबराया॥10॥
फाँसी पर चढ़कर...
हो गए वह बलिदान मगर एक आग लगा दी,
हर भारतवासी में चिंगारी सुलगा दी।
कभी न कहना गांधी जी आजादी लाए,
लाखों दीवानों ने अपने प्राण गँवाए।
तब जाकर के आजादी को हमने पाया॥11॥
फाँसी पर चढ़कर...
सुन लो देशवासियों उनका कर्ज़ यही है,
रखना याद हमेशा अपना फर्ज यही है।
जीवन भर तुम सारे उनकी पूजा करना,
मस्तक उनके चरणों में तुम हरदम धरना।
उनकी पूजा को "रोहित" ने गीत बनाया॥12॥
फाँसी पर चढ़कर...