भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दो अजनबी / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:38, 20 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष मूंदड़ा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दो अनजाने दो अजनबी
जब जि़न्दगी की राहों पर मिले
दोनों ने एक साथ बादलों को देखा
हवा के बहाव को महसूस किया
ठिठुरन भी थी दोनों के दिलों में एक सी
उनकी आँखों ने भी एक-सा सपना बुना
ख़ामोशी की चादर ओढ़े रातों में
एक-सी ख़्वाहिश थी दोनों के मन में
साथ जि़ंदगी गुजारने की
एक दूसरे के पूरक बन
कुछ अलग-सा करने की
जो कभी किसी ने सोचा नहीं
जो कभी किसी ने किया नहीं
वो दोनों बिलकुल एक से थे