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ईश / मनीष मूंदड़ा

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मन ही मेरा दोस्त है
मन रहा है साथ हमेशा
मेरे अधूरेपन को सँवारता
डर के कण निकलता
मेरे साथ मेरे सपनों को पालता
इस मन का साथ रहा है मेरे साथ
कई बार सम्भाला है मन ने
एकाकी से उबारा है मन ने
कई अधूरी बातों को चुपचाप पूरा किया है
मेरे मन ने
जब मैं दुरूखी होता हूँ
मन भी थोड़ी देर साथ देता है
पर फिर सम्भालता है मुझे
मन ही है जो विश्वास देता है
ख़ुशियों की चाह देता है
चलने की राह देता है
मन ही मेरा दोस्त है
मन ही मेरा ईश