तमाशबीन कौन / मनीष मूंदड़ा
कुछ लोग रात के अंधेरे में
रेल की पटरियों पर तमाशबीन
कट कर मर गए
नेताओं का कहना है
साठ थे
समाचार के हवाले
उतने ही थे
कुछ और हैं
जो कटे पड़े हैं
पर मरे नहीं
जि़ंदा हैं अभी
पुरी तरह तो नहीं पर
थोड़ी जि़ंदगी बची है अभी उनमें
इसलिए वह साठ में शामिल नहीं हैं
उनकी अलग गिनती है
अंकों के दायरे में सिमट गए
जो कभी जीवित थे
सपनों से संचित थे
एक मौत
कई लोगों का आसरा छीन लेती है
कई सपने अंधेरों को गर्त हो जाते हैं
कई और मर जाते हैं
जीते जी
उनके मुआवजे का आकलन कैसे होगा?
कौन करेगा?
उनके टूटे सपनो की भरपाई कौन करेगा
उनके कटे, क्षत-विक्षत अरमानो का क्या होगा
आँसू बहेंगे
रोना पीटना भी होगा
भाषण होंगे
भर रोष समाचारों में प्रदर्शन होंगे
फिर सब चुप
जो मरे
जिनके मरे
जो कटे
जिनके कटे
वो सरकार
वो समाचार
वो आक्रोश
वो आवाजें
वो चीख़, पुकार
सब चुप
सब शांत
अगली लाशों के खेप तक।