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पंचतत्व / संतोष श्रीवास्तव

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ज़िंदगी जब आखिरी सीढ़ी
चढ़ रही होगी
छोड़ देंगे जब साथ सब
तब कोई सुर्ख अंगारा
गगन से उतरी
कोई बूंद बारिश की
कोई बादल का टुकड़ा
कोई धरती का कोना
कोई हवा का झोंका
करेगा न इंकार सुनने से
दुख भरी कथाएँ मेरी
ये मीत सच्चे हैं
बाहों में भर लेंगे मुझे
और पहुँचा देंगे
मोक्ष के द्वार तक