भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बयाँ / प्रगति गुप्ता
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:58, 1 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रगति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रिश्तों को निभाना
सीखना हो, तो उन
दरख्तों से सीखिए ...
जिन्हे जख्म जड़ों पर लगते हैं...
और टहनियाँ सूख जाती है...
जब महसूस होने लगे रिश्ते
कहीं दिल के आसपास
तब आँखे भी दिल से,
जाने कौन से रिश्ते निभाती है ...
जो भी महसूस हो जाता है
दिल के पास कहीं
उसकी हर बात पर नमी दे
छलक ही जाती है...
ऐसे गहरे रिश्तों का क्या कहिए
जिनके जख्म लगते कहीं
और बयाँ कहीं और हुआ करते है...
ऐसे रिश्ते खामोश रहकर भी,
खामोशी से ही निभ जाया करते है...