भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिन्दी का एक गीत / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 11 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोजिनी कुलश्रेष्ठ |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी को अपना लें,
अपनी भाषा को अपना लें,
गाने गायें इसमें
भेजे यदि ई-मेल तो वह भी
संभव है इस युग में
बात करें अपनी भाषा में
इसको ही अपना लें।
इसमें ही तो लड़ी लड़ाई
स्वतंत्रता सुख पाने को
रक्त बहाया था बीरों ने
अपना राष्ट्र बनाने को
कटा दिया पर सिर न झुकाया,
उसको ही अपना लें।
यह भारत माँ के माथे की
लाल रंग की बिन्दी है
नाम सहज की भाषा है तो
नाम सहज की 'हिन्दी' है
सब जन इसमें ही बतिआयें,
यही कामना पा लें।
हिन्दी को अपना लें॥