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केवट प्रसंग / राघव शुक्ल
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जंगल ने मंगल गाये हैं,अवध छोड़कर प्रभु आये हैं
पहुंच गए हैं गंगा के तट ,जोड़े हाथ खड़ा है केवट
मुझको गंगा पार उतारो
बोले राम करो मत देरी
केवट बोला प्रभू पधारो
चरण धरो नौका में मेरी
लेकिन मन में इक दुविधा है ,दूर करो प्रभु मेरा संकट
मैंने सुना इन्हीं चरणों ने
पाहन रूप अहिल्या तारी
चरण पखारुंगा मैं पहले
यही शर्त है एक हमारी
प्रभु को देखा जब मुस्काते ,जल से भर कर ले आया घट
प्रभु को बैठाया आसन पर
गंगा जल से चरण पखारे
भक्ति देखकर भर आए हैं
राघव के नैना रतनारे
लखन सिया सब देख रहे हैं,एक भक्त का भगवन से हठ