भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रावण वध / राघव शुक्ल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:02, 24 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राघव शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पथ पर राजाराम खड़े हैं, रथ पर वह लंकेश खड़ा है
यह निर्णायक युद्ध बड़ा है
तभी स्वर्ग से उतरा है रथ
प्रभु श्रीराम चढ़े हैं उस पर
एक ओर शिव भक्त दशानन
एक ओर शिव के प्रभु रघुवर
प्रभु ने कितना ही समझाया, लेकिन जिद पर दुष्ट अड़ा है
इस धरती से उस अंबर तक
रावण दिखलाता निज माया
एक साथ इकतीस शरों को
प्रभु ने है अब धनुष चढ़ाया
निश्चित ही फूटेगा अब तो, भरा पाप का आज घड़ा है
दस शर में दस शीश कटे हैं
बीस शरों में बीस भुजाएं
और एक शर लगा नाभि में
गूंज उठी है सभी दिशाएं
महाप्रतापी रावण देखो ,आज भूमि पर मरा पड़ा है