भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आकाश स्थिर / अजित कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:31, 9 सितम्बर 2008 का अवतरण
और सब अस्थिर
मगर आकाश सुस्थिर है ।
अचिर सब है,
शून्य का, पर, भाव यह चिर है ।
नभ असीम, अपार का
वैभव अदृष्ट, अमाप;
मनुज है ऊँचा बहुत,
पर यहाँ नतशिर है ।