भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोरलिएको चल्लो / दुर्गालाल श्रेष्ठ

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:38, 12 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= दुर्गालाल श्रेष्ठ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चीँ-चीँ चल्लो करायो
‘खोल मेरो झयाल ।’
कुखुरीले कोपरी,
फुलमा पर्योप प्वाल ।

झयालबाट बिस्तारै
चुच्चो निकाली,
फुत्त निस्क्यो चल्लो है
बोक्रो फुटाली ।

बिहानको सित्तलु
सिरिसिरी याम,
आँगनमा मायालु
मिरिमिरी घाम ।

वर-पर नियाल्दै
रमिँदै अपार,
चल्ला बोल्यो मनमनै
‘क्या राम्रो संसार !’