भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कलम उठा / इरशाद अज़ीज़

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:18, 15 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= इरशाद अज़ीज़ |अनुवादक= |संग्रह= मन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थनैं कठैई जावण री
जरूरत नीं है, अर
कीं करण री भी नीं दरकार

बस कलम उठा अर
बगत री छाती माथै
मांड दै बो नूंवो इतियास

बारूद माथै बैठी आ दुनिया
नीं जाणै कै
अेक चिणगारी कांई कर सकै है

म्हैं चावूं हूं कै आ चिणगारी
थारी ई कलम सूं निसरै
लै म्हारै लोही मांय डुबाय‘र
लिख नूंवो इतियास
मांड नूंवा चितराम
जठै लैरावै आपणो झंडो
जठै बसै अपणायत रो गांव
जठै केसरिया अर मूंगो फगत
रंग ईज हुवै, जिका देंवता रैवै
वीरता अर खुसहाली रो सनेसो।