भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जाड़े-दादा / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:21, 25 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जाड़े दादा-जाड़े दादा क्यों आते हो तुम।
हमको सबसे ज़्यादा पीड़ा पहुँचाते हो तुम।
वैसे ही भारी है बस्ता,
फिर ऊनी कपड़े।
मजबूरी में लेकिन इनको,
ढोना हमें पड़े।
कितना बोझ हमारे ऊपर लदवाते हो तुम।
जाड़े दादा-जाड़े दादा क्यों आते हो तुम।
अक्सर नींद हमारी जल्दी,
सुबह न खुल पाये।
फिर स्कूल पहुँचने में भी,
देरी हो जायें।
पापा-मम्मी-टीचर सबसे डँटवाते हो तुम।
जाड़े दादा-जाड़े दादा क्यों आते हो तुम।
प्यारी-प्यारी गर्मी दादी,
हमको भातीं हैं।
आते ही स्कूल हमारे,
बंद कराती हैं।
उतनी छुट्टी नहीं कभी भी करवाते हो तुम।
जाड़े दादा-जाड़े दादा क्यों आते हो तुम।