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उदासी / विपिन चौधरी

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शान्त जीवन में उतरना
उसे भाता है
उतरी वह बहुत हौले से
और बनी रही यहीं
 
अब उसे कहीं नहीं जाना
कोई हड़बड़ी नहीं उसे
 
अब उससे बोलना-बतलाना है बहुत आसान
हो सकता है कल को वह बने
मेरी सबसे अच्छी सखी
 
ख़ुश हूँ कि इस बार पहले की तरह
स्वप्न में नहीं
उतरी है वह जीवन के ठीक बीचोंबीच
 
लाख चाहने पर भी
नहीं कह सकती उसे लौट जाने को
 
उदासी ने भी
कहाँ पूछा था
उतरने से पहले
मेरे पार्श्व में