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ओला वृष्टि / राजेन्द्र देथा

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[१]
————–
यह पहली बार नहीं था कि
भामू नायक को बीज लाना पड़ा था उधार
यह पहली बार नहीं था कि अडाणे रखने पड़े थे
भामू की पत्नी के गहने जेठमल बणिए के यहां
यह पहली बार नहीं था कि आयी हो बरसात
यह पहली बार नहीं था कि ओला वृष्टि हुई हो प्रथम बार
प्रथम बार
[२]
—————
अबोध बादल नहीं जानते कि
उन्हें कहाँ बरसना है
राजधानी की छ मंजिला इमारत
या शाहपुरा के किसी मुरब्बे में।
उनपर यह इल्जाम न लगाएं कि
बिन मौसम में आप क्यूँ बरसे?
वे सदैव विज्ञान के पख में रहे हैं
आप ग़र इल्जाम लगा ही रहे हैं तो
लगाइए इल्जाम उन पर जिन्होंने
आपको चौमूं बनाया पिछली बार
दो लाख के ऋणमाफी के झांसे देकर
[३]
———-
उपरांत ओला वृष्टि
शाम को डिग्गियो पर बैठे
गांव के माणस बड़बड़ाते रहे
भिन्न भिन्न मत लेकर
नूर खां ओनाड़िंग से कहता है –
“सुण वे!
मेकू लगदा ए सिरकार कुज ता पईसा डेसै”
ओनाड़िंग का जवाब होता है –
“दरडे़ मा प्री जाए सिरकारवळै कमासां न खासां “
6.विमर्श के दृश्य
स्त्री पर विमर्श चल रहा था
शहर के एक होटल में
होटल जो शहर के नामी
होटलों में शुमार है।
बीच विमर्श पहुंच गई सुगनी
गार्ड की व्यस्तता का फायदा उठाकर।
सुगनी जो अर्से से मानसिक विक्षिप्त है
और पहुँचते ही निकाले उसने दांत
मुस्काई,और मुस्काती रही दो मिनट
कुर्सियों पर बैठा स्त्रीवाद
ठहाके में बदल गया!
[दृश्य – 2]
लेखकों,बुद्धिजीवियों
कहें कि प्रबुद्धजनों का
आयोजन परवान पर था
बीच बीज़ भाषण
सभा में प्रवेश कर गया
झोला लिए एक फुटपाथी
सभा में हाहाकार मच गया!
[दृश्य – 3]
राजधानी के डिग्गी पेलैस में
चल रहा था जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल
और जारी था सत्र “बिलो पावर्टी लाइन” पर
और कार्यक्रम स्थल पर
आवाजाही थी अतिथियों की
एसएमएस से उठकर आए
कुछ मलंग चुपके पहुंच गए
अंदर कुछ हाथ में आने के लिए
वहां कुछ नहीं था
वहां सिग्नेचर और हिलफिगर पहने
वकील थे,कुछ मेला देखने आयी
स्त्रियां थीं और उनके साथ उनके पुरुष
उनके हाथ में बड़े बेग थे, खरीददारी कर रही थीं
फकीरों को देख नूडल्स खाती अफ़सोसरत थीं