भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गन्दी कुल्फी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:13, 27 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे घर के ठीक सामने,
आया कुल्फी वाला।
बोला-कुल्फी ले लो लाली,
ले लो कुल्फी लाला।

लाला-लाली दोनों दौड़े,
झटपट कुल्फी लाने।
हाथ पकड़कर उनको रोका,
उठकर दादी माँ ने।

यह कुल्फी गंदी है बच्चो,
दादी माँ चिल्लाई।
किसी नदी-नाले के गंदे,
जल से गई बनाई।

यह कुल्फी खाई तो निश्चित,
आएगी बीमारी।
दोनों बच्चे बोले दादी,
वेरी-वेरी सॉरी।