भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ामोशी / विजय बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:19, 28 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय बहादुर सिंह |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
क्षितिज पर
छाई हुई है
धूल
उदास
धुन की तरह
बज रही है ....
ख़ा ... मो ... शी !
ख़ामोशी, ख़ामोशी, ख़ामोशी !