भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पेंटिंग-2 / गुलज़ार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:55, 30 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार }} ’जोरहट’ में एक दफ़ा दूर उफ़क के हलके-...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

’जोरहट’ में एक दफ़ा

दूर उफ़क के हलके-हलके कुहरे में

’हमीन बरुआ’ के चाय बाग़ान के पीछे

चांद कुछ ऎसे दिखा था

जैसे चीनी की चमकीली कैटल रखी हो!