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मल्लिकार्जुन मंसूर / कुलदीप कुमार
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चौहत्तर साल की वह निष्कम्प लौ
एकाएक काँपी
और
उसने चश्मा लगा लिया
जरा देखें
सुरों के बाहर भी है
क्या कोई दुनिया?