भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अखबार / अरविन्द यादव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:53, 22 अक्टूबर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज सूरज के जागने से पहले
किसी ने ज़ोर से खटखटाया दरवाज़ा मेरे कमरे का
मैंने नींद, सोया था जिसके आगोश में
छोड़कर, खोला कमरे का दरवाजा

अचानक मैं रह गया अवाक
देखकर उस निर्भय साथी को
जिसके साथ हम रोज
बतियाते थे, पीते हुए चाय

भय से काँप रहा था उसका शरीर
दिखाई दे रहे थे जगह-जगह स्याह चोट के निशान
इतना ही नहीं, दिखाई दे रहे थे अनगिनत घाव
जिनसे झलक रहा था खून कहीं-कहीं

हिम्मत बँधाते हुए, देकर हाथों का सहारा
उठाकर ले गया कमरे के अन्दर
लेकर के गोद जब पूछा हाल-ए-दिल
वह बोला काँपते हुए लड़खड़ाती आवाज़ में

हत्यायें कर रहीं हैं साजिश, करने को मेरी हत्या
लुटेरे आतुर हैं लूटने को, मेरी सच की संचित पूँजी
कुर्सियाँ कर रहीं हैं कोशिश, करने को नतमस्तक
अपनाकर, साम, दाम, दण्ड, भेद

क्यों कि मैं नहीं मिलाता हूँ, उनकी हाँ में हाँ
जैसे मिलाते हैं और बेचकर अपना जमीर
इसलिए सब मिटाना चाहते हैं मेरा अस्तित्व
ताकि दबाया जा सके, स्वर प्रतिरोध का।