भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वाणी-वंदन / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:32, 4 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामगोपाल 'रुद्र' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मा वाणी! मा वाणी! जय-जय जय मा वाणी!
शरच्चन्द्र-पूर्णिम-विभावरी,
सुधानना, अनुपम विभा-भरी,
अंग-अंग सित-कुन्द, कांत-वपु,
शुभ्र शुक्लवसना सुधाधरी,
वीणा-मंडित, सुर-नर-वंदित, सित-शतदल-थिर-ज्ञानी!
कुमतिहारिणी, भक्त-तारिणी,
मन्दस्मितमुख, तमनिवारिणी,
नमस्कार हे, बार-बार हे,
जन मराल-मानस-विहारिणी,
धृत-पुस्तक-मणि-स्फटिक-मालिका, मुद-मंगल-मतिदानी!
अहो वेद-वेदांग-अखिल-मति,
अखिल-ज्योति-धारिणी, अखिल-गति,
लक्ष्मी, मेधा, धरा, पुष्टि हे,
गौरी, प्रभा, तुष्टि, ओ मा धृति!
अपनी विविध मूर्तियों से कल्याण करो, कल्याणी!