भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जागो जगत्प्राण / रामगोपाल 'रुद्र'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:44, 10 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामगोपाल 'रुद्र' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जागो जगत्‍प्राण!
सुधि के बरुण-बाण,
भूतल-अनलवान शीतल करो हे!

लाओ ललित हाव,
भव में भरो भाव,
कलिमल कुटिल चाव प्रांजल करो हे!

पाकर तुम्हें कूल,
कलियाँ बनें फूल,
हर फूल की धूल परिमल करो हे!