कविता-2 / शैल कुमारी
उन्हें हर वक़्त की तलाश है!
वे अपने तेज़ नाख़ून और दाँतों को
नुकीले और धारदार बनाते रहते हैं,
बहुत पुरानी
ज़ंग खाई छुरी और बर्छी को
सान पर चढ़ाकर
सारी तैयारियों से लैस
उन्हें प्रतीक्षा रहती है वार करने की
एक बेधे हुए लक्ष्य को बेधकर
गर्वीली मुस्कान ओढ़ लेने की
वे मार गिराने के नए तरीक़े
ईज़ाद करने में फ़िक्रमंद हैं
निशाना कभी चूक भी सकता है
इसकी उन्हें परवाह नहीं
उन्हें चिंता है केवल ज़ोर आज़माने की
चारों ओर, जो कुछ भी है
उसे ध्वस्त कर
जीत की ख़ुशी में डूब जाने की
आस-पास उगती हुई दूब
कोमल पत्तों पर ठहरी हुई ओस की बूँद
सब कुछ झुलस रहा है
आयुधों की बौछार में
कहाँ कौन-सा कोना घायल हो गया
उन्हें यह भी नहीं मालूम!
जाओ उन्हें आज़ाद कर दो
उनका शरीर निचुड़ गया है
केवल ख़ौफ़नाक साँस
ऊपर नीचे गिर उठ रही है
और, अपनी आग में वे ख़ुद झुलस रहे हैं।