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सीता / शीतल साहू

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सीता, एक अइसन नारी
जिनगी जेकर दुख पीरा के खान
सब कष्ट सहिके घलो
नइ फुटिस मुंह ले जेकर एक जबान
सुनव, एक नारी के रिहिस जिनगानी अइसन।

जनम लेइस ए धरती माता के कोरा ले
नियति हा पहुँचा दिस वोला राजा के कोरा में
राजा जनक के आंखी के पुतरी बनके
खेलन लागिस राजमहल के घेरा में
देखत देखत पहुँचगे शादी के उमर के बेरा में।
राजा रिहिस एक राजकुँवर के अगोरा में।

जान सीता ल गुणी अउ सुकुमारी
खोजे बर सीता सम गुण रूप धारी
राखिस स्वयम्बर के प्रतियोगिता भारी
उहि बनहि सीता के जीवन संगवारी
जे होही दुनिया के सबले बड़का धनुषधारी।

मिलिस सीता ल राम जइसे जोरी
जे रिहिस पुरुषोत्तम मर्यादाधारी
बनगे अजोध्या के वह अब युवरानी
पर नियति करत रिहिस ओकर निगरानी
समय के चक्कर कुछ अइसे चलिस
नइ बन पाईस अजोध्या के वह महरानी।

देख राम के ऊपर बड़ विपदा भारी
चौदह बछर बर होंगे ओकर देस निकारी
तब बनके एक आदर्श पत्नी अउ नारी
तज महल के सुख सुविधा भारी
धारण कर लिस जोगिन के वल्कल सारी।
बने बन घुमन लगिस वह राजदुलारी
भटकन लागिस पति संग वह जंगल झारी
जे कभू खुले पांव नई चले रिहिस दुवारी
अब खुरचत चालिस बन के कांटा खूंटी अउ पथरा कंकरी।

कभू छप्पन भोग के खवैय्या
खाये ला परिस जंगली फल अउ कांदा भाजी
कभू राजमहल के सुख सुविधा में रहवैया
घास पत्ता के कुंदरा में रेहे बर होईल परिस राजी।
कभू मखमल के बिस्तर में सोवैया
पैरा अउ कुस के बिछौना में करेल पडिस कलथिबाजी।

रात बीतिस दिन बीतिस
हप्ता बीतिस महीना बीतिस
अउ एक बछर ले दु बछर बीतिस
गरमी अउ बरसात बीतिस
बनवास के बारा बछर बीतिस।

तब नियति फेर करिस एक अउ उदिम
बन के सोन हरिन छले बर मारीच पहुचीस
लेबर बदला अपन बहिनी के अपमान अउ दुर्दसा
लंका के राजा, छल कर सीता ला हर लिस

फिर पहुचीस राक्षस मन के डेरा में
अशोक वाटिका के रक्षिण मन के घेरा में
रावण के अपवित्र छुवन और नज़र ले
ओकर छल अउ माया के जंजाल से
रक्षा करिस अपन सतीत्व के
एक तिनका के अग्नि घेरा में।

कर युद्ध राम, रावण ला हरा
खतम करिस सीता के अगोरा
पर एक अलहन फेर करदिस सबला झकझोर
समाज के आगू अपन पवित्रता ल सिध्द करें बर
पडिस सीता ला सतीत्व के अग्निपरीक्षा देबर।

अपन नारीत्व ला सीता सिध्द कर
संग चलिस अपन अजोध्या के डाहर
आव भगत होविस गाँव-गाँव अउ नगर नगर
बनिस सन्यासिन से महरानी ए बार
फिर समय के एक बार होइस उलटफेर
नियति है लिस परीक्षा ओकर अउ एक बेर।

सुन जनता के विचार अउ राज धरम के मर्यादा बर
कर दिस देस निकारा सीता के फिर एक बार
ए बार रिहिस थोड़ा अउ कठिन ये इकरार
कोख में रिहिस ओकर रघुकुल के दो आंखी के तार
लेके चलिस बाल्मीकि मुनि के आसरम तहर

फिर एक बार जंगल म मिलिस आश्रय
तपस्विनी जिनगी जियत बनदेवी कहाय
हर तरह के विद्या अउ गुण ला सिखाय
बना दिस अजोध्या के उतराधिकारी दु भाय
थोडीक भाग्य करवट ले, दिस राम मिलाय

पर फिर एक बार नियति करिस उपहास
लोगन मन करिस एक बार फिर अविश्वास
अग्नि परीक्षा से साबित करे सतीत्व के प्रकास
पर ये बार होंगे सबो सीमा पार
परीक्षा के रूप में नइ अब सह पाइस अतियाचार।

कर पूरा अपन कर्तब्य, वह करिस गुहार
मां धरती करदे ओकर उद्धार
दया अउ ममता के कर फोहार
दे अपन कोरा में थोडीक मोला जगह उधार
मां, ले चल ए निष्ठुर संसार के ओ पार।

त्याग अउ तपस्या के मूरत वह नारी
प्रेम अउ सहनशीलता के सूरत वह नारी
एक सुलक्षणी सुता
एक पतिव्रता भार्या
एक आज्ञाकारी बहु

एक ममतामयी महतारी
एक महान महरानी
एक अद्भुत आदर्श नारी
हाँ भाई सीता रिहिस एक अइसन नारी।