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डर / श्रीविलास सिंह

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कबीर
तुमने व्यंग किया
ख़ुदा के बहरे होने पर,
मज़ाक उड़ाया
पत्थर की पूजा का,
तुमने काशी के अभिजात्य को छोड़
मगहर में मृत्यु चुनी
पर तुम्हारे ख़िलाफ़
न तो फ़तवे जारी हुए
सिर काट लेने के,
न हुए तुम मॉब लिंचिंग का शिकार,
मध्य-युग के
उस क्रूरतम समय में भी।
और हम आज इक्कीसवी सदी के जनतंत्र में
डरे हुए है
दोहराने में
तुम्हारी कविता।