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प्रतिक्रिया / दीप नारायण
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जानि ने किए
खौंझा गेलियैक
किएक भ' गेलियैक
बेकाबू
कहैत गेलियैक
छूटल-छूटल बात
दैत गेलियैक उपराग
ने कोनो भाषा छोड़लियैक
ने कोनो दशा
ओहो कहि सकैत छली बात
मानि सकैत छली रोख
द' सकैत छली उपराग
मुदा,
आँखिमे नोर नुकबैत
प्रतिक्रिया स्वरूप
हमर बातक उतारामे
भाड़ी स्वरे
एतबे बजली
'रातिसँ उपासल छी अहाँ
खायक बेओंत केलहुँ अछि
भोजन क' लीय
निर्वाक/निःशब्द, ठाकुआयल
हम सोंचैत रहलहुँ अनन्त मे
आ कलेमचे खाइत रहलहुँ
तीमन-सोहारी आ हरियर मेरचाइ ।