भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गाँव-गिरांव / राम करन
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:23, 27 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम करन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <po...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नदी किनारे गाँव,
झुरमुट-झुरमुट छाँव।
कल-कल-कल-कल, टल-मल,
चह-चह-चह-चह हर ठाँव।
इधर लगे कभी नाव,
उधर लगे कभी नाव।
इसपार और उसपार,
महुआ-पीपल की छाँव।
झींगुर झीं-झीं झाँव,
ज्यों माँग रहा हो दाँव।
क्यों उड़ी टिटहरी ऊपर!
चल रख नीचे तू पाँव।
कौआ यदि कहता काँव,
आयेगा कोई गांव।
जब जब आते मेहमान,
खुश होता है गाँव-गिरांव।