सर्जना से / मोहन अम्बर
सर्जना से
रूको मत रखो नाव पर पाँव अपना
चलो ले चलूँ मैं तुम्हें उस किनारे।
नजर लग न जाए तुम्हें चन्द्रमा की
तनिक पाल की छांह में बैठ जाओ
अभी इस नदी में बहुत जल भरा है,
सरल रूप रानीे नहीं मुस्कुराओ।
तुम्हें देख कर चाँदनी कुढ़ रही है,
घिरे मेघ से कुन्तलों को संवारे,
चलो ले चलूं मैं तुम्हें उस किनारे।
विषली हवा से कहो लौट जाए,
वसन्ती मलय से मधुर गंध हो तुम,
पुराने हठीले स्वरों को सबक दो,
नई ज़िन्दगी का नया छंद हो तुम,
तुम्हारे दरस औ परस में अमरता,
तुम्हारे बिना फिर किसे युग पुकारे?
चलो ले चलूं मैं तुम्हें उस किनारे।
खड़े उस किनारे बहुत से बटोही,
उजड़ते समय को सर्जन प्यास देकर,
मगर बिन तुम्हारे सभी कुछ अधूरा
चलो गीत रानी सफल आस लेकर,
करो मत अबेरी गगन धुल रहा है,
यही हैं सुबह के निमंत्रण इशारे।
चलो ले चलूं मैं तुम्हें उस किनारे।