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यातनाएँ झेलनेवाला / अरविन्द श्रीवास्तव

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रात
पिराहना मछलियों-सी कुतरती रही तुम्हारी यादें
और दिन भर बदनाम कुर्सियों को
सुनाता रहा मैं मुक्ति गीत
एक गिटार ने मुझे जीने का गुर सिखाया
एक आत्मा जो दूर है मुझसे
उसे बार-बार आमंत्रित करती रही
मेरी लहूलुहान कविताएं
उदास दिनों में एक बेहतरीन सपने
सौपना चाहता हूँ उस स्त्री को
जिसे पृथ्वी पर मेरे होने का
अंतिम सबूत मान लिया जाएगा !

यह मेरी एक कूटनीतिक विजय होगी
कि हमदोनों ऊँची चहारदीवारी लांघ सकेंगे अब
कि शिकारी कुत्तों को खदेड़ देंगे हमारे सपने
कि यातनाएं झेलनेवाला ही होगा
प्रेम करने में सबसे अव्वल !