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वर्तमान के तीन चित्र / मोहन अम्बर

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यह एक समस्या बहुत बड़ी इसका न अभी हल मिलता है,
जो कोलाहल जन्माता है, कोलाहल उसे निगलता है।
बादल से आग बरसती है, पानी में मछली जलती है,
पर भीड़ भरे चौराहों पर, केवल चर्चाएँ चलती हैं।
कारण की खोज कहीं कोई, करता न दिखाई देता है,
हर तरफ़ अकर्म विजेता है, औ सर्जन हथेली मलता है।
यह एक समस्या बहुत बड़ी, इसका न अभी हल मिलता है।
ये धर्म और ये राजनीति, इन दिनों उन्हें भटकाते हैं,
इन्सान बनाने की धुन में जो कुछ भी उम्र बिताते हैं।
यह कथ्य लगे झूठा तुमको तो जोड़ो एक कथा यह भी,
प्याऊ पर नीर पिलाता जो, पीछे उसका घर जलता है।
यह एक समस्या बहुत बड़ी, इसका न अभी हल मिलता है।
वैसे तो जो कवि हैं उनका सिक्का दुनिया चलवाती हैं,
लेकिन जीते जी उसे कभी द्वारों पर नहीं बुलाती हैं।
गाये तो रंजन होता है, रोयें तो मोती झरते हैं,
वह अमरित बीन बजाता है, सुनने को साँप निकलता है।
यह एक समस्या बहुत बड़ी, इसका न अभी हल मिलता है,
जो कोलाहल जन्माता है, कोलाहल उसे निगलता है।