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मृत्यु / श्रीविलास सिंह

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थकन के उन क्षणों में
जब विश्राम चाहती होंगी
यात्राएँ
जब स्मृतियाँ सन्तृप्त हो चुकी होंगी
जब देह होगी बस अतीत का स्मारक
और आँगन में खिली धूप
छिप गई होगी नीम की लम्बी होती छाया में
दुनिया का होना होगा
मात्र एक परम्परागत औपचारिकता ।

जब सारे प्रेम सम्बन्ध गा रहे होंगे
विदा के गीत
जब सारी पीड़ाएँ करबद्ध होंगी
क्षमा-प्रार्थना की मुद्रा में
जब मिट चुका होगा
सुख-दुख, प्रेम-घृणा, मित्र-अमित्र का भेद
और झर रहे होंगे
आशीष के पुष्प
धुँधलाई हुई आँखों से ।

गोधूलि के उन क्षणों में
वह आएगी धीरे से
अन्धेरे का आँचल लहराते हुए
चुपचाप रख लेगी मेरा सिर
अपनी गोद मे
और उत्तप्त माथे पर फिराएगी
अपनी हिम-शीतल उँगलियाँ
और वह क्षण ठहर जाएगा
जीवन और मृत्यु के सन्धिस्थल पर
सारी यात्राओं को मिल जाएगा विश्राम
मृत्यु जब आएगी ।