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प्रेम / संजय सिंह 'मस्त'
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वृक्षों फूलों को पानी देता हुआ,
वह पार कर गया कई सदियाँ।
खाद को पसीने मेंं घुलाता,
अँधेरे मेंं टटोलता,
जड़ों को पुकारता।
उनमें होता हुआ आया वह फूलों, फलों तक।
पर एक भी खिंचाव नहीं दिया जीवन को।
वह लेट कर सुस्ताया जड़ों के पास,
वहीं रचे उसने सुंदर श्रमगीत,
जड़ों से ही लाया वह फूलों को,
देवता ले गये उसके फूल,
बच्चे ले गये,
तीज-त्योहार ले गए.
आँचल, जूड़े ले गये उसके फूल।
फूल उसका प्रेमी,
कभी उसके हाथ नहीं लगा।