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इन्सान / सुदर्शन रत्नाकर
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सूरज निकला तो उसने
सब पर अपनी किरणें बिखेरीं
चाँद निकला तो उसने
सबको सफ़ेद चाँदनी से नहला दिया
हवा बही तो उसने
तन बदन को छू लिया
फूल खिले तो उन्होंने
अपनी ख़ुशबू से सराबोर कर दिया
पक्षी उड़े तो आसमान की सीमाओं को
लाँघ लिया
इन्सान उठा, तो उसने घृणा, द्वेष
फैला दिया
तोप तलवार की नोक पर
पूरी धरती को बाँट दिया।