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देश महिमा / पुष्पलाल उपाध्याय

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हाम्रो देश विशाल भारत, यहाँ यौटै बगैँचा थरी।
धेरै जाति र धर्म प्राण जनता बस्छन्, गुजारा गरी।।
भाषा भेष विभिन्न संस्कृति कला साहित्य धारा यहाँ।

हाँगा, पात, लता अनेक थरीका छन् फुल झुप्पा तर।
यौटै मूल छ मातृभूमि सबको स्वाधीन यो भारतमा।।
इच्छा मानिसको त के! ऋषिहरू, ती स्वर्गका देउता।
तम्सिन्छन् यहिँ बस्नलाई, बसुधा छन् पूर्ण ऐश्वर्यता।।
 
ज्ञानी, वीर, सुधी, प्रवीण, प्रतिभाशाली सुसन्तानले।
आमालाई सुखी गराउन निकै ठुला प्रतिज्ञा गरे।।
सेवा, सत्य, दया र त्याग, तपको एकान्त कर्मस्थल।
हाम्रा रत्न विभूतिका कृतिहरू छन् धेरै चारैतिर।।

नाना साधन शक्तिका किरणले यो देश आलोकित।
यो हो सात्विक साधना सुपथको सत्सङ्ग सत्याश्रय।।
खारी मानव कर्म शक्ति प्रतिभा चंकेर ज्योतिर्मय।
पारी पूर्ण प्रकाश शान्ति पदमा पुग्छन् महामानव।।